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सामाजिक जीवन मे ही वन्धन है, नियम है। सामाजिक प्रतिष्ठा का मोह ही बन्धनो मे वद्ध करता है। निर्बन्ध जीवन जीना है तो समाज से मुक्त आध्यात्मिक जीवन जीना चाहिये । सामाजिक सुविधाओ के बिना जीवन जीने की शक्ति उपार्जित करना चाहिये । सामाजिक जीवन मे भौतिक सुखो की कुछ प्राप्ति हो सकती है, परन्तु घोर अशान्ति को भी स्वीकार करना पड़ता है।
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