Book Title: Path ke Pradip Author(s): Bhadraguptavijay Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana View full book textPage 103
________________ [ १०५ ] HTMLAN CHUT जानी पुरुप स्वय के मन का तो समाधान अवश्य कर सकता है, परन्तु अज्ञानी के मन का समाधान कर ही सके, ऐसा नियम नही है। कर भी सके और नही भी कर सके | भगवान् महावीर परमात्मा प्रियदर्शना साध्वी को नही समझा पाये, लेकिन उसी को कु भकार श्रावक ने समझा दिया था। BREA240Page Navigation
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