Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 82
________________ [८१ ] । YAN स्पब लोग अपने सुख, अपने आनन्द " , "अपनी सुविधाओ के लिए तो प्रयत्न करते हैं | तो मै अपनी शान्ति के लिए प्रयत्न क्यो न करूं ? तो मै अपने आत्महित के लिए प्रयत्न क्यो न करूं ? परोपकार और परमार्थ भी क्या है ? मनुष्य अपने आनन्द के लिए ही तो परोपकार व परमार्थ करता है । अपने आत्मा से आनन्द पाने वाला दुनिया की दृष्टि में शायद स्वार्थी भी दिखे ... इससे क्या मतलव ? । KAHd TE th DO C [७१ GINAL Sy

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