Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 85
________________ [ ८५ ] FIRTA त उसको चाहता है, इसलिये वह तुझे चाहे ही, ऐसा नियम नहीं है। क्या तुझे जो चाहते है, उनको तू चाहता है ? मन के प्रश्नो का ऐसा समाधान करे, जिस समाधान से मन शान्ति का अनुभव करे। सव शास्त्रो, ग्रन्थो, कितावो आदि से यही तो पढना है | मन के समाधान की कु जियाँ । सदैव प्रसन्न रहने का यही मार्ग है। 'वह क्यो नहीं चाहता ?' इस प्रश्न का समाधान नही है क्या? PARALA WikO % DOL अ dramas Deep to . 29 FAS JAG ya

Loading...

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108