Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 89
________________ । [८६ ] किमी के जीवन की चिन्ता करने से क्या ? परन्तु फिर भी चिन्ता हो ही जाती है। जिसके प्रति स्नेह होता है, उसके जीवन की चिन्ता हो ही जाती है। इस चिन्ता से तभी मुक्ति मिल सकती है, जबकि ज्ञानदशा जाग्रत हो। ATMAS - [.६० ] कौन किसके लिए जीता है ? कोई नही। सब अपने लिए ही जीवन जीते है। जीते-जीते दूसरो का भला हो जाय तो अच्छा है। ७८ ]

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