Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 99
________________ [ १०१ ] जहाँ तक हम दुनिया मे रहें, वहाँ तक तो विशेष चिन्ता नही; परन्तु जब दुनिया हमारे मन मे बस जाय तव भय है, खतरा है। " " नाश है | भले ही हम दुनिया मे रहे, हमारे मन मे दुनिया का प्रवेश नहीं होना चाहिये । हमारे मन मे तो परमात्मा का ही निवास बना रहना चाहिये । जिसके मन मे दुनिया बस गई, उसका पतन ही हुआ "विनाश ही हुआ समझो। ८८ ]

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