Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 84
________________ DAAN NAS [ ८४ ) ANI । SHANT एक व्यक्ति के तन के , दु.ख को दूसरा व्यक्ति मिटा सकता है । मिटाने का प्रयत्न कर सकता है अथवा देख तो सकता ही है, परन्तु मन के दु.ख तो बताये जाय, तव ही मिटाये जा सकते हैं। हम अपने मन के दु ख को दूसरो को वतायें ही नही तो दूसरा क्या कर सकता है। तव स्वय ही मन की अशान्ति का उपाय करें। मन के दु.खो से ही मनुष्य ज्यादा परेशान है। COMLOD [ ७३ Doto FY . YO KE

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