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जन्म..."जीवन और मृत्यु' " यह सृष्टि का क्रम है। उत्पत्ति, स्थिति और लय ! निरन्तर परिवर्तन । परिवर्तनशील विश्व मे जो सदैव स्थिर है, उसको तो मै देवता ही नही हूँ और परिवर्तनशील को स्थिर बनाने की फिक्र में परेशान हूँ। जीवन का स्वाभाविक प्रवाह मृत्यु की ओर है, इस सत्य को नही जानता हुआ ...."जीवन को विता रहा हूँ।
जन्म ही न हो तो? जन्म का बन्धन ही टूट जाय तो?
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