Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 79
________________ [ ७८ ] AAYE जब किसी व्यक्ति की मृत्यु के समाचार मिलते हैं, तब विचार आता है 'बस, वह चला गया ? ५०-६० वर्ष का जीवन ' ' 'इस छोटे से जीवन के लिए उसने कितना जाल फैलाया? कितना परिश्रम किया ? वह तो चला गया... "पीछे सब पड़ा रहा ' जीवनमोह .."जीवन सजाने का मोह ही तो जीव को भ्रमित करता है। रोज हजारो जीवन समाप्त होते है.... "हजारो जन्म लेते है । कैमा अजीव है, संसार का यह चक्र !! ६८ ]

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