Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ Naram RAO [ ७५ ] सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र की जीवनस्पर्शी आराधना कैसे हो? जान का सम्बन्ध दृष्टि से, दर्शन (श्रद्धा) का हृदय से और चारित्र का सम्बन्ध नाभि से स्थापित करे। RAN - be AULA Yanालर [७६ ] दृष्टि ज्ञानमय बन जाय और नाभि सयमपूत बन जाय ... " मोक्ष दूर नहीं है। BEST 1845CS

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108