Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 76
________________ [ ७४ ] YKOVESMS मोक्ष मुख का अभिलाषी प्रशम सुख का अभिलाषी नही ? कैसी बात है, यह ।। प्रशम सुख की अभिलाषा वाला ही मोक्ष सुख पा सकता है, यह सत्य क्या मोक्षार्थी नही जानता होगा ? फिर प्रशम सुख पाने का प्रयत्न क्यो नही करे ? उसका जीवन ही वह प्रशम मुख के अनुकूल क्यो न जीये ? प्रशम सुख का अनुभव ही मोक्षमुख पाने के लिये बाध्य करता है। 6818 5

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