Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 75
________________ Pund [ ७३ ] - RESS . धर्म करने वाले....... अर्थात् धर्मक्रिया करने वाले धर्मध्यान ही नही जानते । धर्मध्यान के विना धर्मक्रिया कैसी ? परमात्मपूजन करने वाले परमात्मस्वरूप का चिन्तन नही करते ... फिर पूजन कैसा ? ध्याता ध्यान के विना ध्येय में लीन नही बन सकता है। ध्येयलीनता के बिना ध्येय प्राप्ति कैसे हो सकती है ? धर्मध्यान मे मन को लगाना ही चाहिये। L

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