Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 44
________________ 4 { ENERARg BI [ ३६ ] ) मात्र पत्थर-आप कौन है ? वीतराग-मैं वीतराग हूँ। पत्थर-वीतराग कैसे ? वीतराग-मेरे मे राग नही है, द्वेष नहीं है। पत्थर-अच्छा, तव तो मै भी वीतराग ! मेरे मे भी राग नही है, द्वेष नही है। वीतराग-ठीक है, राग-द्वप तेरे मे नही है, लेकिन पापाण की कठोरता तो है न ? सर्व जीवो के प्रति करुणाभाव कहाँ है? पत्थर वीनराग को झुक गया वीतराग ने पत्थर को XX [३३ 604-1

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