Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 62
________________ [ ५८ ] anter 1STRICT क्या-तू मुविधाओ का सुख चाहता है ? ये ही दुख है। सुविधाओ मे सुख की कल्पना, भ्रम है | मानव तू सोच-विचार सुविधाओ के मुख मे पूर्णविराम कहाँ है ? ___इच्छाओ की सफलता का सुख क्या तू चाहता है ? इच्छाओ का अन्त कहाँ है ? इच्छाओ से मुक्त होने पर जो सुखानुभव होता है, उसका अनुभव करना आवश्यक है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108