Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ भPAHAR MAKON KAur का Thanti देखा, परन्तु सोचा नही । चखा, परन्तु अनुभव नही किया। पुरुपार्थ किया, परन्तु पाया कुछ नही । फिर जीवन का क्या अर्थ? मित्र, क्या बताऊँ ? लोग सोचते ही नही, अनुभव करते ही नही....."फिर क्या पायें। कहते हैं-"हमने कुछ पाया नही " कैसे पायें ? सुख-दुख के चक्र से बाहर निकलें तब न सुख-दुःख के चक्र मे सही चिन्तन को स्थान कहाँ ? T ५८ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108