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तारक"."उद्धारक तत्त्व तो विश्व में सदैव व सर्वत्र विद्यमान है। हमे उस तत्त्व के प्रति अभिमुख होना है। अभिमुख होना माने पात्र होना। परमात्मतत्त्व तो जैसा चौथे आरे मे था, वैसा ही आज है। हम उसका सहारा लें और भव सागर तैरने लग जयो।
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परिवर्तनशील ससार मे ज्यादा समय बिताना उचित नही । परमात्मा का सान्निध्य शीघ्र प्राप्त कर निर्भय बने ।
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