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[ ६५ ] जितने प्रश्न है, उतने समाधान है । शास्त्र क्या है ? प्रश्नो का समाधान ही तो । समाधान ऐसे हो कि नये प्रश्न पैदा ही न हो, तब समता आती है। जब तक प्रश्न है, तव तक समता नहीं है । श्रद्धावान् जीव दूसरो के द्वारा दिये गये समाधान से तृप्त होता है, बुद्धिमान् जीव स्वयं समाधान ढूढता है । यदि वह शास्त्रो व ग्रन्थो के अध्ययन से समाधान ढूढता है, तो महान् चिन्तक बन जाता है।
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