Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

View full book text
Previous | Next

Page 68
________________ /ET 5: JUST HOLD) JA का [ ६५ ] जितने प्रश्न है, उतने समाधान है । शास्त्र क्या है ? प्रश्नो का समाधान ही तो । समाधान ऐसे हो कि नये प्रश्न पैदा ही न हो, तब समता आती है। जब तक प्रश्न है, तव तक समता नहीं है । श्रद्धावान् जीव दूसरो के द्वारा दिये गये समाधान से तृप्त होता है, बुद्धिमान् जीव स्वयं समाधान ढूढता है । यदि वह शास्त्रो व ग्रन्थो के अध्ययन से समाधान ढूढता है, तो महान् चिन्तक बन जाता है। । ५७

Loading...

Page Navigation
1 ... 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108