Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 64
________________ म [६० ] PORN AJMER THI क्या परमात्मा के बिना जीवन अधूरा लगता है ? परमात्मकृपा के विना भी जीवन चलता है न ? फिर परमात्मा की भक्ति क्यो? प्रीति के बिना भक्ति नही हो सकती। प्रीति .."प्रियतम के विरह मे व्याकुलता पैदा करती है और प्रियतम के सम्पर्क में निमग्नता प्रकट करती है । परमात्मा के विरह मे व्याकुलता नही है .. 'तो देर है परमात्मपद की प्राप्ति मे। REATREKULSHEmmSEPATTI - - MMEN Rummy

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