Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 49
________________ [४] भले ही हम बडे ज्ञानी न बन 2 24 52- CA " सके, परन्तु बडे ज्ञानी को पहिचान सकें और उसके प्रति प्रीतिपूर्ण श्रद्धा वाले भी बन सकें, तो हमारा कल्याण निश्चित है । श्रद्धा माने श्रद्धा वहाँ शका- . कुग का नही होना चाहिए। जहाँ शका वहाँ श्रद्धा नही | ज्ञानी पुरुप की हमारी कल्पना इतनी ही होना चाहिए कि हम उसके प्रति आदरयुक्त बने रहे। जानी का अर्थ यदि 'सर्वगुणसम्पन्न' करेगे तो वर्तमान विश्व मे कोई ऐमा ज्ञानी मिलेगा? - - - - - - y ~ W T 1654 ALTEE HAPA SAN amantrorearmer २८ ] AL AE

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