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साधना के पथपर चलने वालो को, जब विपाद-ग्रस्त देखता हूँ और मै उनको विपाद-मुक्त करने मे अपने आपको असमर्थ पाता हूँ, तव में स्वय विषाद-ग्रस्त बन जाता हूँ। मेरे प्रिय साधक की भी अशान्ति मै नही निटा सकता, अपनी इस विवशता पर मुझे रोष आता है। जिस व्यक्ति ने ससार के सर्व संवधो का विच्छेद क्यिा, उस व्यक्ति को भी वन्धन ! भयकर वन्धन !!
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