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प्रच्छी मनमोहक बाते करने वालो का जीवन व्यवहार जब कलुषित दिखाई देता है, तव दर्शक के मन मे न केवल उनके प्रति अरुचि होती है, अपितु
अच्छी बातो के प्रति भी घृणा । पैदा हो जाती है ।
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देखो, आपका मन कही परिग्रह के भार से दब तो नहीं गया ? भारी मन ही परिग्रह है। मन भार हीन बनादो। मन को मुक्त करो। अह और मम के भार से मन को मुक्त करो। ४८ ]