Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 59
________________ AM मा [ ५४ ] CAL - LRAIL MOPAN. (COMPETI प्रच्छी मनमोहक बाते करने वालो का जीवन व्यवहार जब कलुषित दिखाई देता है, तव दर्शक के मन मे न केवल उनके प्रति अरुचि होती है, अपितु अच्छी बातो के प्रति भी घृणा । पैदा हो जाती है । N [ ५५ ] देखो, आपका मन कही परिग्रह के भार से दब तो नहीं गया ? भारी मन ही परिग्रह है। मन भार हीन बनादो। मन को मुक्त करो। अह और मम के भार से मन को मुक्त करो। ४८ ]

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