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तोर्यभूमि तपोभूमि वन जाय, साधना-भूमि बन जाय तो मनुप्य को मन शान्ति और आत्मकल्याण प्राप्त हो सकता है। परमात्मा का दर्शन व पूजन साधना की दृष्टि से होना चाहिये। उसमे अनुशासन चाहिये । शान्ति के लिए इधर-उधर भटकने वालो को ऐसे तीर्थ मिल जाय तो? तीर्थ है, परन्तु तीर्थों का रूप वदलता जा रहा है। मूल स्वरूप आवृत्त हो रहा है ।
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