Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 54
________________ MAR [४६ ] यश-कीर्ति एव प्रसिद्धि की कामना से मुक्त होना आवश्यक है, अन्यथा मन.शान्ति दुर्लभ है । प्रसिद्धि की स्पर्धा मे अनेक नुकसान भी है, उन्हे देखना चाहिये। सिद्धि · 'आत्मसिद्धि के जीवन में विश्व-प्रसिद्धि का कार्य उसके अनुरूप नही है । प्रसिद्धि का प्रयोजन अन्य जीवो को धर्मोन्मुख बनाना होता है, परन्तु वहाँ आत्मा की अत्यन्त जानन स्थिति अपेक्षित है। [ ४३

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