Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 45
________________ . " UCU Gilal P/ENU PHA अपना वाह्यरूप दिया · 'वीतराग की मूर्ति बनी पापण-वीतराग का अभेद मिलन हुआ • ." विश्व मे दोनो की कीर्ति बढ गई। वीतरागता के साथ सकल विश्व के प्रति अन्नतकरुणा परमात्मा की विशेषता है । वीतरागता मात्र तो पत्थर मे भी है ! परमात्मा की अनन्तकरुणा के पात्र बने । OGY ३४

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