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[ ३८ ] कम से कम आवश्यकताओ मे जीवन व्यतीत हो जाय तो कितना अच्छा । आवश्यकताओ की कोई सीमा ही नही । ५-५० वर्ष की जिन्दगी और ५-२५ हजार आवश्यकता । अनुकूल साधनो की उपलब्धि मे मनवचन-काया की कितनी शक्ति चली जाती है । क्या मानव जीवन इसीलिये है ? अनुकूलताओ की भीड मे भगवान् से मै कैसे मिलू ? कैसे वांत करू?
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