Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 41
________________ । [ ३५ ] B. MAR "पाप सुख देने वाले लगते है। जो सुख दे, वह पाप नही ।" कैसी भ्रामक मान्यता हृदय मे दृढ हो गई है ? हृदय मे ऐसी मान्यता प्रतिष्ठित हो और बाहर से धर्मक्रियाएँ करे। वाह" . कैसी हमारी श्रद्धा है । अरे भैया, पापो से सुख मिलता तो दुनिया मे सुखी लोग 'मेजोरिटी' मे होते | हैं क्या सुखी की 'मेजोरीटी' ? नही । दुखी ही ज्यादा है। क्यो? पापी ज्यादा है, इसलिये । 8810 ३०

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