Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 39
________________ एम pertAM [ ३३ ] Pra hti इससे भी ज्यादा सुनलो । राजा की रानी लीलावती का ज्वर मिटाने के लिए अपनी शाल दी '' "तो आल आया ! राजा ने ही दोनो को कलकित किया ." उस समय महामत्री ने अपनी ही सलामती नही सोची"; प्राणो का खतरा मोल लेकर लीलावती को अपनी ही हवेली में गुप्तरूप से रखा और १ लाख नवकार जपवाये । स्वय स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहे और सकट को टाला । - ACTROHTAS FOTyws

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