Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 37
________________ [ ३१ ] -- MCa बोलने दो दुनिया को ! दुनिया की तरफ मत देखो। इस प्रकार तो दुनिया ने कइयो की बुराई की है। दुनिया का यही ढग है। लेकिन एक बात सुनलो | दुनिया से अपनी प्रशसा सुनने की कामना तो नही है न ? हाँ, दुनिया की प्रशसा सुननी है, तो बुराई भी सुनना पडेगी । स्व प्रशंसा की भूख भयकर है, उमको ही मिटादो। दुनिया की प्रशसा से क्या और निन्दा से क्या? क्षणिक आनन्द | परमात्मा की दृष्टि मे निमंल बनते चलो । ALLIONA N ARTA २६ ]

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