Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 42
________________ G Tut [ ३६ ] दसरे मनुष्य का मन समझकर, उसको सुधारने का प्रयत्न करो। उसके मन के प्रश्न समझने की आवश्यकता है। मन को धोने की प्रक्रिया का ज्ञान होना चाहिये। इसलिए दूसरो के प्रति करुणा चाहिये, धिक्कार नही। -- [ ३७ ] I ) वन जीना है कि मेरी ओर से किसी को भी अशान्ति न हो, दु.ख न हो | क्या मेरी यह कामना इस संसार मे सफल बन सकती है ? N

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