Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 25
________________ [ १७ ] pm CORE CULTUSIC देवराज इन्द्र प्रसन्न होकर कहे "ले यह तलवार विश्वविजयी वनेगा"।“ मै कहूँगा "मुझे विश्वविजय नहीं चाहिये।" "तो ले यह पारसमणि, विश्व की सम्पत्ति का मालिक बनेगा"। “ मैं कहूँगा. "मुझे सम्पत्ति का क्या करना है ?" वे कहेगे "तो ले ये वीज, वोना। इनसे जीव-जीव मे मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ्य प्रकट होगा। सुरभि से विश्व सुवासित हो उठेगा।" में हर्ष से नाच उठू गा और उन वीजो को लेकर आत्मभूमि मे वोऊ गा । दूसरो को भी दूंगा। १४ ]

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