Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 30
________________ LI AESE ला PDATO [ २२ ] खव तक मै पर्यायदृष्टा हूँ, तब तक शान्ति नही मिलेगी। मुझे द्रव्य दृष्टा बनना चाहिये । शुद्ध आत्मद्रव्य का चिन्तन शान्ति प्रदान कर सकता है। पर्यायदर्शन मे मात्र राग-द्वष है । Clil Hawa INVITAMIT [ २३ ] और कुछ आराधना नही होती है ? तो परमात्मा का नाम व परमात्मा की आकृति से स्नेह जोड दो। परमात्मा से सम्बन्ध स्थापित कर दो। ठठठ " [ १६ LA x NON N

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