Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 24
________________ Sy YNAA HT NEPONRN रANTA [ १५ ] द ख बाहर मे नही आता, दुख के वीज हमारी आत्मा मे ही पडे है । उनको खोद कर फेक दो फिर दुख पैदा ही नही होगे। दुख के ये वीज है-क्रोध, मान, माया और लोभ। ये वीज नही तो दुख नही! [१६] ATCHINT AIL त दूसरो के दोप क्यो देखता है? दूसरे के दोपो का विचार क्यो करता है ? तू छोड़ दे यह आदत। तेरा दोपपूर्ण व्यक्तित्व तेरी दोप-दृष्टि का ही फल है। - 2-6 4 . [ १३

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