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द ख बाहर मे नही आता, दुख के वीज हमारी आत्मा मे ही पडे है । उनको खोद कर फेक दो फिर दुख पैदा ही नही होगे। दुख के ये वीज है-क्रोध, मान, माया और लोभ। ये वीज नही तो दुख नही!
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त दूसरो के दोप क्यो देखता है? दूसरे के दोपो का विचार क्यो करता है ? तू छोड़ दे यह आदत। तेरा दोपपूर्ण व्यक्तित्व तेरी दोप-दृष्टि का ही फल है।
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