Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 22
________________ IAN [ १३ ] TION भा तन त क्या चाहता है ? कौन मी इच्छाएँ कर रहा है ? मै मना नही करता। तू इच्छाएँ कर, लेकिन ऐसी इच्छाएँ करना, जो तेरे स्वाधीन हो । ऐसी इच्छा मत करना, जिसमे पराधीनता हो । हाँ, तुझे विवेक रखना पडेगा । तू कहता है इच्छाएँ हो जाती है, करनी नही पडती । ठीक है, जो इच्छा हो जाय, उस पर तू इतना विचार करना'इस इच्छा की पूर्ति मैं स्वाधीन रहकर कर सकता हूँ?, नव करना। - - [ ११ A .KE.

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