Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 21
________________ L AMALS W-YYA NIRom IIII SAUDIT ilaj KARO [ १२ ] पाप को पाप तो मानना ही पडेगा। दु खो का मूल पाप है, यह भी मानना पडेगा । पापो का आकर्षण तब ही टूट सकता है। पापो का आकर्षण टूट जाने के बाद पाप करने पर भी .. पाप हो जाने पर भी, कर्म बध शिथिल होगा । पाप को पाप मानकर, पापो से छुटकारा पाने के लिए योजना Plan वनाइये। दूसरे सब क्षेत्रो मे योजना बनाते है, तो इस क्षेत्र मे क्यो नही ? मरते समय पाप बहुत कम हो जाने चाहिये। NCE १० ] NER

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