Book Title: Path ke Pradip
Author(s): Bhadraguptavijay
Publisher: Vishvakalyan Prakashan Trust Mehsana

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Page 17
________________ [ ७ ] SAR KHAND जीवनमार्ग काटो से व्याप्त है। आकाश मेघाछन्न है। मार्गदर्शक कोई नहीं है और पगडडी धूल से छिप गई है । पथिक । जीवन यात्रा के पथिक | तू आगे बढ । निराश मत हो। हृदय मे से घबराहट दूर कर । मुख पर प्रसन्नता और दिल मे उल्लास लिये तू आगे बढ । परम कृपानिधि परमात्मा की दृष्टि तेरे पर है, यह ध्यान में रख । उन पर पूर्ण भरोसा कर ... तेरी जीवन यात्रा के वे पथ-प्रदर्शक हैं। Crs

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