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सच तो यह है तुम्हीं हो संसार । जब तुम स्वयं को बदलना शुरु करते हो, तो संसार को बदलना तुमने शुरु कर ही दिया - इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है। अगर तुम दूसरों को बदलने के लिए जाते हो, तो तुम स्वयं को न बदल सकोगे; और जो स्वयं को नहीं बदल सकता, वह किसी दूसरे को भी नहीं बदल सकता। वह केवल ऐसा मान सकता है कि वह बहुत बड़ा काम कर रहा है, जैसा कि तुम्हारे राजनीतिज्ञ मानते हैं।
तुम्हारे सभी तथाकथित क्रांतिकारी रुग्ण हैं, तनाव में हैं पागल हैं, विक्षिप्त हैं लेकिन उनकी रुग्णता और विक्षिप्तता ऐसी है कि अगर उन्हें अकेला छोड़ दिया जाए तो वे पूरी तरह से पागल हो जाएंगे, इसलिए वे अपनी विक्षिप्तता को किसी न किसी कार्य में उलझा देते हैं। या तो वे समाज को बदलने में लग जाते हैं, समाज को सुधारने में लग जाते हैं, या यह करेंगे, वह करेंगे, कुछ न कुछ करने लगते हैं... पूरे संसार को बदलने निकल पड़ते हैं और उनकी विक्षिप्तता ऐसी होती है कि वे उस विक्षिप्तता में छिपी हुई मूढ़ता को नहीं देख पाते : तुमने स्वयं को तो बदला नहीं है, तो तुम किसी दूसरे को कैसे बदल सकते हो?
स्वयं के निकट आने से प्रारंभ करो। पहले स्वयं को बदलो, पहले अपने भीतर का दीया जलाओ, तब तुम योग्य हो पाओगे.. सच तो यह है फिर यह कहना कि दूसरों को बदलने की योग्यता आ जाएगी, यह भी ठीक नहीं है वस्तुतः जब तुम स्वयं को बदलते हो तो असीम ऊर्जा के स्रोत बन जाते हो, और वह ऊर्जा अपने से ही दूसरों को बदल देती है। ऐसा नहीं है कि इसके लिए श्रम की आवश्यकता होती है या शहीद होना पड़ता है। नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। तुम स्वयं में ही बने रहते हो, लेकिन वह ऊर्जा, उसकी शुद्धता, उसकी निर्दोषता, उसकी सुवास, उसकी तरंग चारों ओर फैलती चली जाती है। उसकी खबर संसार के कोने कोने तक हो जाती है तुम्हारे बिना किसी प्रयास के ही एक क्रांति प्रारंभ हो जाती है। और जब क्रांति बिना किसी प्रयास के होती है, तो वह सुंदर होती है। और जब क्रांति प्रयासपूर्ण होती है, तो उसमें हिंसा होती है, क्योंकि तब तुम अपने विचारों को जबर्दस्ती दूसरों के ऊपर लादते हो।
स्टॅलिन ने लाखों लोगों की हत्या कर दी, क्योंकि वह क्रांतिकारी था वह समाज को बदलना चाहता था। और जहां भी उसे लगता कि कोई भी व्यक्ति उसके मार्ग में किसी तरह की बाधा खड़ी कर रहा है, तो वह उसकी हत्या करके उसे अपने मागें से हटा देता था। कई बार ऐसा होता है कि जो लोग दूसरों की मदद करने की कोशिश करते हैं, उनकी मदद खतरनाक हो जाती है फिर वे लोग इस बात की फिक्र ही नहीं करते कि सामने वाला व्यक्ति बदलना भी चाहता है या नहीं; उनके पास तो बदलने की धारणा होती है। वे व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध उसे बदल देंगे। फिर वे किसी की नहीं सुनेंगे। इस तरह की क्रांति हिंसात्मक क्रांति होती है।
और क्रांति हिंसात्मक नहीं हो सकती, क्योंकि क्रांति तो हृदय की होनी चाहिए। एक सच्चा क्रांतिकारी किसी को बदलने कभी कहीं नहीं जाता। वह स्वयं में ही स्थित रहता है; और जो लोग रूपांतरित होना