Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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( २५ ) के कारण न्यूनातिन्यून होते जाते हैं और पूर्व-पूर्व में उनकी अधिकता है । यह वर्णन अनेक जीवों को आधार बनाकर किया है। ___अनन्तर एक जीव एवं समयापेक्षा गुणस्थानों में प्राप्त जघन्यउत्कृष्ट बंधहेतुओं का वर्णन किया है। यह निर्देश करना आवश्यक भी है। क्योंकि प्रत्येक जीव अपनी वैभाविक परिणति की क्षमता के अनुरूप ही बंधहेतुओं के माध्यम से कर्म बंध कर सकता है । ऐसा नहीं है कि सभी को एक ही प्रकार के कर्म-पुद्गलों का बंध हो, एक जैसी प्रकृति, स्थिति, अनुभाग शक्ति प्राप्त हो।
यह समस्त वर्णन आदि की छह गाथाओं में किया गया है। अनन्तर सातवीं गाथा से प्रथम मिथ्यात्व आदि गुणस्थानों में प्राप्त बंधहेतुओं के सम्भव विकल्पों का निर्देश करके उनके भंगों की संख्या का निरूपण किया है । यह सब वर्णन चौदहवीं गाथा में पूर्ण हुआ है ।
इसके बाद पन्द्रहवीं से लेकर अठारहवीं गाथा तक जीव-भेदों में प्राप्त बंधहेतुओं का वर्णन किया है । अनन्तर उन्नीसवीं गाथा में अन्वय-व्यतिरेक का अनुसरण करके कर्मप्रकृतियों के बंध में हेतुओं की मुख्यता का निर्देश किया है। अन्त में तीन गाथाओं में परीषहों के उत्पन्न होने के कारणों और किसको कितने परीषह हो सकते हैं, उनके स्वामियों का संकेत करके प्रस्तुत अधिकार की प्ररूपणा समाप्त की है।
यह अधिकार का संक्षिप्त परिचय है। विस्तृत जानकारी के लिए पाठकगण अध्ययन करेंगे, यह आकांक्षा है। खजांची मोहल्ला
-देवकुमार जैन बीकानेर ३३४००१
सम्पादक
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