Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधहेतु प्ररूपणा अधिकार : गाथा :
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स्थान पर तेरह और छह को रखकर पूर्वोक्त क्रम से अंकों का गुणा करने पर (४६.८००) छियालीस हजार आठ सौ भंग होते हैं ।
५. अथवा भय, जुगुप्सा और कायचतुष्कवध के ग्रहण से भी पन्द्रह हेतु होते हैं। उनके भंग (६०,०००) नब्बे हजार होते हैं।
६. अथवा भय, अनन्तानुबंधी और कायचतुष्कवध के ग्रहण से भी पन्द्रह हेतु होते हैं । इनके भी पहले की तरह (१,१७,०००) एक लाख सत्रह हजार भंग होते हैं । - ७ इसी तरह जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और कायचतुष्कवध से बनने वाले पन्द्रह हेतुओं के भी (१,१७, ७००) एक लाख सत्रह हजार भंग होते हैं।
८. अथवा भय, जुगुप्सा, अनन्तानुबंधी और कायत्रिकवध को लेने से भी पन्द्रह हेतु होते हैं। इनके (१,५६,०००) एक लाख छप्पन हजार भंग होते हैं।
इस प्रकार पन्द्रह हेतु आठ प्रकार से होते हैं और इनके कुल भंग (६,०००+३६,०००+३६,०००+४६,८००+६०,०००+१,१७,०००+ १,१७,०००+१,५६,००० =६,०४,८००) छह लाख चार हजार आठ सौ होते हैं। ___ पन्द्रह हेतुओं के प्रकार और उन प्रकारों के भंगों को संख्या बतलाने के बाद अब सोलह बंधहेतुओं के प्रकार और उनके भंगों का प्रतिपादन करते हैं
१. पूर्वोक्त दस बंधहेतुओं में भय और छहकायवध को ग्रहण करने पर सोलह हेतु होते हैं । पूर्वोक्त क्रमानुसार उनका गुणा करने पर (६,०००) छह हजार भंग होते हैं ।
२. इसी प्रकार जुगुप्सा और छहकायहिंसा को मिलाने से भी सोलह हेतु होते हैं । पूर्वोक्त क्रमानुसार उनका गुणा करने पर (६,०००) छह हजार भंग होते हैं।
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