Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 185
________________ १५० पंचसंग्रह : ४ इस प्रकार से सासादनगुणस्थान सम्बन्धी दस से लेकर सत्रह तक के बंध प्रत्ययों के कुल भंग और उनके जोड़ का प्रमाण इस प्रकार है— १. दस बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १०९४४ २. ग्यारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = ४९२४८ ३. बारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १०२१४४ ४. तेरह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १२७६८० ५. चौदह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १०२१४४ ६. पन्द्रह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ५१०७२ ७. सोलह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १४४६२ ८. सत्रह बँधप्रत्यय सम्बन्धी भंग = १८२४ इन सब भंगों का कुल जोड़ ४५६६४८ होता है । मिश्र गुणस्थान - इस गुणस्थान में नौ से लेकर सोलह तक बंधप्रत्यय होते हैं । इस गुणस्थान में अपर्याप्त काल सम्बन्धी औदारिकमिश्र, वैक्रियमिश्र और कार्मण काययोग, ये तीन योग न होने से तथा आहारद्विक योग यहाँ होते ही नहीं, इसलिये केवल दस योग प्रत्ययों के रूप में ग्रहण किये जायेंगे | जघन्य से मिश्र गुणस्थान में इन्द्रिय एक, काय एक, अनन्तानुबंधी के बिना अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और संज्वलन सम्बन्धी कोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये नौ बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+३+१+२+१=ε। इनके भंग ६ x ६ X ४X३X२ × १०८६४० होते हैं । दस बंधप्रत्यय के दो विकल्प हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये - ( क ) इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये दस बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में रूप इस प्रकार है १+२+३+१+२+१=१०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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