Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 187
________________ १५२ पंचसंग्रह : ४ अब बारह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और भंगों को बतलाते हैं । बारह बंधप्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है— १+४+३+१+२+१=१२। ( ख ) इन्द्रिय एक काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+३+३+१+२+१+१=१२ । (ग) इन्द्रिय एक काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंहष्टि इस प्रकार है १+२+३+१+२+२+१=१२ । इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं (क) ६ × १५ × ४X३X२×१० = २१६०० होते हैं । (ख) ६x२०X × ३ × २ × २ × १० = ५७६०० होते हैं । (ग) ६ × १५X४X३X२×१०= २१६०० होते हैं । इन तीनों विकल्पों के भंगों का कुल योग (२१६००+५७६००+२१६०० १००८००) एक लाख आठ सौ होता है । तेरह बंधप्रत्यय के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसं दृष्टि इस प्रकार है १+५+३+१+२+१=१३ । (ख) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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