Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 186
________________ बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १५१ (ख) इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस तरह दस बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+३+१+२+१+१=१० । इन दोन विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६४१५X४-३-२-१०=२१६०० भंग होते हैं । (ख) ६x६x४४३x२x२x१०= १७२८० भंग होते हैं। इन दोनों का कुल जोड़ (२१६००+१७२८०=३८८८०) अड़तीस हजार आठ सौ अस्सी है। ग्यारह बंधप्रत्यय के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक. ये ग्यारह बंध प्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+३+३+१+२+१=११ । (ख) इन्द्रिय एक, काय दो, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय द्विक में से एक और योग एक, ये ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार जानना चाहिये १+२+३+१+२+१+१=११ । (ग) इन्द्रिय एक, काय एक, क्रोधादि कषाय तीन, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भद्विक और योग एक, ये ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में रूप इस प्रकार है १+१+३+१+२+२+१=११।। इन ग्यारह बंध प्रत्ययों सम्बन्धी तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६X २०X४४ ३४२४१० = २८८०० होते हैं । (ख) ६X १५X४४३x२x२x १०=४३२०० होते हैं । (ग) ६x६X४X ३४२X १०=८६४० होते हैं । इनका कुल योग (२८८००+४३२००+८६४०=८०६४०) अस्सी हजार छह सौ चालोस है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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