Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ बंधहेतु-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १६३ १+१+२+१+२+२+१=-१०। उक्त तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६X १०x४X ३x२x६=१२६६० भंग होते हैं । (ख) ६४१०x४-३-२x२x६२५६२० भंग होते हैं । (ग) ६४५४४४३X २x६=६४८० भंग होते हैं। इन तीनों विकल्पों के कुल भंगों का जोड़ (१२६६०+२५६२०+ ६४८० = ४५३६०) पैंतालीस हजार तीन सौ साठ है। अब ग्यारह बंधप्रत्यय, उनके विकल्पों व भंगों को बतलाते हैं। ग्यारह बंधप्रत्यय के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय चार. क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+४+२+१+२+१=११ । (ख) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भय द्विक में से एक और योग एक, ये ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में रूप इस प्रकार है १+३+२+१+२+१+१=११ । (ग) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक और योग एक, इस प्रकार ग्यारह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+२+२+१+२+२+१=११ । उपर्युक्त ग्यारह बंधप्रत्यय सम्बन्धी विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६४५४४४३४२x६=६४८० भंग होते हैं। (ख) ६४ १०x४४ ३४२x६=२५६२० भंग होते हैं। (ग) ६४१०x४x ३x२x६=१२६६० भंग होते हैं । इन सब भंगों का कुल जोड़ (६४८०+२५६२०+१२६६० = ४५३६०) पैंतालीस हजार तीन सौ साठ होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212