Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 199
________________ पंचसंग्रह : ४ अब बारह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और भंगों को बतलाते हैं। बारह बंधप्रत्ययों के तीन विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकरचना इस प्रकार है १+५+२+१+२+१=१२ । (ख) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+४+२+१+२+१+१=१२।। (ग) इन्द्रिय एक, काय तीन, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये बारह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+३+२+१+२+२+१=१२ । इन तीनों विकल्पों के भंग इस प्रकार हैं(क) ६४१४४४३x२x६=१२६६ भंग होते हैं । (ख) ६४५X४Xx२x२x६=१२६६० भंग होते हैं। (ग) ६४१०४४४३४२x६=१२६६० भंग होते हैं। इन तीनों विकल्पों के कुल भंगों का जोड़ (१२६६+१२९६०+१२९६० ==२७२१६) सत्ताईस हजार दो सौ सोलह होता है । अब तेरह बंधप्रत्यय, उनके विकल्प और भंगों को बतलाते हैं । तेरह बंधप्रत्ययों के दो विकल्प इस प्रकार हैं (क) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय दो, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, ये तेरह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+५+२+१+२+१+१=१३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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