Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंध प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट
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कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक युगल, भययुगल और एक योग, इस तरह सात बंबप्रत्यय होते हैं । इनकी अंक संदृष्टि इस प्रकार है
१+१+२+२+१=७।
इनके भंग: =४×३×२×६ = २१६ होते हैं तथा आहारकद्विक योग की अपेक्षा इनके भंग ४×१×२x२=१६ होते हैं ।
इन दोनों का जोड़ (२१६+१६= २३२) दो सौ बत्तीस है ।
इन तीनों प्रकार के बंधप्रत्ययों के भंगों का कुल जोड़ इस प्रकार जानना चाहिए
१. पांच बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २३२ होते हैं ।
२. छह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ४६४ होते हैं ।
३. सात बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २३२ होते हैं ।
इन सब भंगों का कुल जोड़ (६२८) नौ सौ अट्ठाईस है ।
अब अप्रमत्तसंयत और अपूर्वक रण गुणस्थान सम्बन्धी बंधप्रत्ययों और उनके भंगों को बतलाते हैं ।
७- ८. अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण गुणस्थान- इन दोनों गुणस्थानों में भी प्रमत्तसंयत गुणस्थान के समान ही पांच, छह और सात ये तीन प्रकार के बंधप्रत्यय हैं । किन्तु ये तीनों आहारकद्विक के बिना समझना चाहिए । अतएव इनके भंग इस प्रकार हैं
कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक' युगल और एक योग, ये पांच बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है
१+१+२+१=५ ।
इनके भंग ४ X ३X२x६ = २१६ होते हैं ।
कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक
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