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________________ बंध प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १६७ कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक युगल, भययुगल और एक योग, इस तरह सात बंबप्रत्यय होते हैं । इनकी अंक संदृष्टि इस प्रकार है १+१+२+२+१=७। इनके भंग: =४×३×२×६ = २१६ होते हैं तथा आहारकद्विक योग की अपेक्षा इनके भंग ४×१×२x२=१६ होते हैं । इन दोनों का जोड़ (२१६+१६= २३२) दो सौ बत्तीस है । इन तीनों प्रकार के बंधप्रत्ययों के भंगों का कुल जोड़ इस प्रकार जानना चाहिए १. पांच बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २३२ होते हैं । २. छह बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग ४६४ होते हैं । ३. सात बंधप्रत्यय सम्बन्धी भंग २३२ होते हैं । इन सब भंगों का कुल जोड़ (६२८) नौ सौ अट्ठाईस है । अब अप्रमत्तसंयत और अपूर्वक रण गुणस्थान सम्बन्धी बंधप्रत्ययों और उनके भंगों को बतलाते हैं । ७- ८. अप्रमत्तसंयत, अपूर्वकरण गुणस्थान- इन दोनों गुणस्थानों में भी प्रमत्तसंयत गुणस्थान के समान ही पांच, छह और सात ये तीन प्रकार के बंधप्रत्यय हैं । किन्तु ये तीनों आहारकद्विक के बिना समझना चाहिए । अतएव इनके भंग इस प्रकार हैं कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक' युगल और एक योग, ये पांच बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+२+१=५ । इनके भंग ४ X ३X२x६ = २१६ होते हैं । कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि एक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001901
Book TitlePanchsangraha Part 04
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages212
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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