Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 203
________________ १६८ पंचसंग्रह : ४ युगल, मयद्विक में से कोई एक और योग एक, ये छह बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार हैं १+१+२+१+१=६। इनके भंग ४ x ३x२४२x६= ४३२ होते हैं । कोई एक संज्वलन कषाय, तीन वेदों में से कोई एक वेद, हास्यादि युगल, भययुगल और एक योग, ये सात बंधप्रत्यय होते हैं । इनकी अंकसं दृष्टि इस प्रकार है १+१+२+२+१=७। इनके भंग ४X३X२x६ = २१६ होते हैं । इन तीनों बंधप्रत्ययों के कुल भंगों का जोड़ (२१६+४३२+२१६= ८६४ ) आठ सौ चौंसठ है | अब अनिवृत्तिबादरसं पराय गुणस्थान के बंधप्रत्यय और उनके भंगों को बतलाते हैं । ६. अनिवृत्तिवादरस पराय गुणस्थान- इस गुणस्थान में तीन और दो बंधप्रत्यय होते हैं । इसका कारण यह है कि इस गुणस्थान के सवेद और अवेद ये दो विभाग हैं । अतएव सवेदभाग की अपेक्षा तीन और अवेदभाग की अपेक्षा दो बंधप्रत्यय जानना चाहिए । सवेदभाग में चारों संज्वलन कषाय, तीनों वेद और नौ योगों में से कोई एक-एक होने से तीन बंधप्रत्यय होते हैं । अथवा नपुंसकवेद को छोड़कर शेष दो वेदों में से कोई एक वेद अथवा केवल पुरुषवेद होता है । इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+१+१=३ | इनके भंग इस प्रकार हैं ४+३+६=१०८ भंग होते हैं । ४+२+६=७२ भंग होते हैं । ४+१+१=३६ भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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