Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 208
________________ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन १९-१. विपत्तियों की जड़ : जुआ १) २०-२. मांसाहार : अनर्थों का कारण १) २१-३. मानव का शत्रु : मद्यपान १) २२-४. वेश्यागमन : मानव जीवन का कोढ़ १) २३-५. शिकार : पापों का स्रोत १) २४-६. चोरी : अनैतिकता की जननी १) २५-७. परस्त्री-सेवन : सर्वनाश का मार्ग १) २६. जीवन सुधार (संयुक्त जिल्द) ८) २७-३६. सुधर्म प्रवचन माला (दस धर्म पर १० पुस्तके) प्रत्येक ६) ३७-३६. काव्य साहित्य : ३७. जैन राम-यशोरसायन १५) ३८. जैन पांडव-यशोरसायन ३०) (नवीन परिवद्धित तुलनात्मक भूमिका व परिशिष्ट युक्त) ३६. तकदीर की तस्वीर (काव्य) उपन्यास व कहानी-साहित्य४०. सांझ सबेरा ४) ४१. भाग्य क्रीड़ा ४) ४२. धनुष और बाण ५) ४३. एक म्यान : दो तलवार ४) ४४. किस्मत का खिलाड़ी ४) ४५. बीज और वृक्ष ४) ४६. फूल और पाषाण ५) ४७. तकदीर की तस्वीर ४) ४८. शील सौरभ ५) ४६, भविष्य का भानु ५) अन्य साहित्य५०. विश्व बन्धु महावीर १) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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