Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह ४ दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६x १५४४(==३६०)x२x२x २=२८८० ।
तीनों वेद और दस योगों की अपेक्षा तीनों प्रकार से उत्पन्न भंग १४४०+ १७२८०+२१६०० =४०३२० ।।
चौदह बंधप्रत्ययों के कुल भंगों का जोड़ ४८+१६२+५७६+२३०४+ ७२०+२८८०+४०३२० = ४७०४०) सैंतालीस हजार चालीस होता है।
अब पन्द्रह बंधप्रत्ययों के भंगों को बतलाते हैं
(क) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६X १X४(=२४)x १४२ X२४१-६६ ।
दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६४१X ४(=२४)x२x२x२x२ =३८४ ।
(ख) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६x६x४(= १४४)X१X २४१=२८८ ।
दो वेद और दो योगों की अपेक्षा-६x६x४(=१४४)x२x२x २=११५२ ।
तीनों वेद और दस योगों की अपेक्षा दोनों प्रकारों से उत्पन्न भंग२८८०+८६४०=११५२० ।
पन्द्रह बंधहेतुओं के कुल भंगों का जोड़ (९६+३८४+२८८+११५२+ ११५२० = १३४४०) तेरह हजार चार सौ चालीस होता है ।
अब सोलह बंधप्रत्ययों के भंगों को बतलाते हैं
एक वेद और एक योग की अपेक्षा=६ X १४४(=२४)X१X२X १-४८ ।
दो वेद और दो योगों की अपेक्षा-६X १X४(=२४)x२x२x २=१६२ ।
तीन वेद और दस योगों की अपेक्षा-६१४४(=२४)x३X२X १०=१४४० ।
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