Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 193
________________ पंचसंग्रह : ४ ग्यारह बंधप्रत्ययों के सर्व भंगों का कुल जोड़ ( १६० + ३८४० + १४४० +५७६०+२८८+११५२÷८०६४०= ६४०८ ० ) चौरानवे हजार अस्सी १५८ होता है । अब बारह बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग बतलाते हैं- (क) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६X१५X४ (= ३६०)×१× २x१=७२०t दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६X१५X४ (=३६०)×२×२X २=२८८० । (ख) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६x२० X ४ ( = ४८० ) x १ x २x२×१ = १६२० | दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६x२०x४ (= ४८०)×२x२× २x२=७६८० । (ग) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६X१५X४ (=३६०) X १ × २× १ = ७२० । दो वेद और दो योगों की अपेक्षा ६X१५X४ (= ३६०)×२×२× २८२५८० । तीनों वेद और दस योगों की अपेक्षा से उत्पन्न भंग २१६००+ ५७६०० +२१६००=१०८०००। बारह बंधप्रत्ययों के सर्व भंगों का कुल जोड़ ( ७२० + २८८० - १९२० +७६८०+७२०+२८८०+१०८००० = ११७६०० ) एक लाख सत्रह हजार छह सौ होता है । अब तेरहं बंधप्रत्ययों सम्बन्धी भंग बतलाते हैं (क) एक वेद और एक योग की अपेक्षा ६×६× ४ (= १४४) ×१×२ X १=२८८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212