Book Title: Panchsangraha Part 04
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 183
________________ १४८ पंचसंग्रह : ४ इन भंगों का कुल योग (१०३६८+५७६+५१८४०+२८८०+३४५६०+१९२० = १०२१४४) एक लाख दो हजार एक सौ चवालीस होता अब पन्द्रह बंधहेतु के विकल्पों और भंगों को बतलाते हैं। पन्द्रह बंधहेतु के तीन विकल्प इस प्रकार जानना चाहिए (क) इन्द्रिय एक, काय छह, क्रोधादि कषाय चार. वेद एक, हास्यादि युगल एक और योग एक, ये पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं। इनकी अंकसंदृष्टि इस प्रकार है १+६+४+१+२+१=१५। (ख) इन्द्रिय एक, काय पांच, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भयद्विक में से एक और योग एक, इस तरह पन्द्रह बंधप्रत्यय होते हैं । इनका अंकों में रूप इस प्रकार है १+५+४+१+२+१+१=१५।। (ग) इन्द्रिय एक, काय चार, क्रोधादि कषाय चार, वेद एक, हास्यादि युगल एक, भययुगल और योग एक, ये पन्द्रह बंधहेतु होते हैं । अंकों में इनको इस प्रकार जानना चाहिए १+४+४+१+२+२+१=१५ । इन विकल्पों के भंग इस प्रकार जानना चाहिए(क) ६४ १४४४३४२४१२= १७२८ भंग होते हैं। ६४१X४X२x२x१=६६ भंग होते हैं। (ख) ६x६x४४३x२x२x १२=२०७३६ भंग होते हैं। ६x६४४x२x२x२x१=११५२ भंग होते हैं। (ग) ६४१५४४४३४२४१२=२५६२० भंग होते हैं। ६४१५४४४२x२x१=१४४० भंग होते हैं। इन भंगों का कुल जोड़ (१७२८+६६+२०७३६+११५२+२५६२० +१४४०=५१०७२) इक्यावन हजार बहत्तर होता है । अब सोलह बंधहेतु के विकल्पों और भंगों को बतलाते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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